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लेखनी प्रतियोगिता -08-May-2023

सखि, ये मन शैतान बड़ा है 
चंचल पवन के जैसे ये मन 
निर्मुक्त सा गगन में उड़ा है 
सखि, ये मन शैतान बड़ा है 

इक पल भी कहीं ठहर न पाये 
इसको कहीं भी ना चैन ही आये 
भाग के सजना के पास ही जाये 
जुल्मी मुझे हाय बड़ा तरसाये  
नैन लगे जबसे तब से बिगड़ा है 
सखि, ये मन शैतान बड़ा है । 

इसके पीछे मैं डोलूं दिन भर 
कभी चौबारे तो कभी छत पर 
याद सताए उनकी रह रह कर 
कैसे जिऊं इतने दुख सह कर 
कैसे जुलमी से पाला पड़ा है 
सखि, ये मन शैतान बड़ा है । 

श्री हरि 
8.5.23 


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12 Comments

Hari Shanker Goyal "Hari"

09-May-2023 01:40 PM

🙏🙏

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Varsha_Upadhyay

08-May-2023 11:28 PM

Nice 👍🏼

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Hari Shanker Goyal "Hari"

08-May-2023 11:50 PM

🙏🙏

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madhura

08-May-2023 08:38 PM

osm poem

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Hari Shanker Goyal "Hari"

08-May-2023 11:50 PM

🙏🙏

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